आप लोगो ने कभी ना कभी p. I. L. पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन यानी के जान हित याचिका का नाम जरूर सुना होगा आखिर ये p.i.l. क्या होती हैं
ये कब क्यो और कैसे फाइल की जाती हैं और इसका इफेक्ट क्या होता हैं इन सभी चीजों के बारे में आज के इस पोस्ट में हम बात करने वाले है तो चलिए शुरू करते हैं
देश के हर नागरिक को संविधान के ओर से 6 फण्डा मेंट्रास राइट मिले हुए हैं
1 . Right to equolily
2 . Right to freedom
3 . Right agoinst exploitation
4 . Right to freedom of religion
5 . Cultural and educational rights
6 . Right to constitutional remedies
अगर किसी नागरिक की किसी भी फंडा mental right का वॉलेशन् हो रहा है तो वो हाइकोर्ट मे या सुप्रीम कोर्ट में पिटिशन् फाइल कर के अपने फण्डा मेन्टा right रक्षा के लिए गोहार लगा सकते हैं
वो आर्टिकल 226 के तहत हाइकोर्ट का और आर्टिकल 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता हैं अगर ये मामला निजी न होके पब्लिक इंटरेस्ट से जुड़ा हुआ है तो फिर इस पिटिशन् को पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन के तौर से देखा जाता हैं
और p. I. L. यानी पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन डालने वाले सक्स को अदालत में ये बताना होगा की उस मामले में आम लोगों का इंट्रेस्ट कैसे अफेक्ट् हो रहा है अगर मामला निजी हिस्से से जुड़ा है
या किसी निजी तौर के right का वलेशन हो रहा है तो उसे जनित याचिका नही कहा जाता हैं पब्लिक इंटरेस्ट के मामले में दायरे की गई याचिका को पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन कहा जाता हैं और इसी के तहत इसकी सुनवाई होती हैं दायर की गई याचिका जन हित है
या नही इसका फैसला कोर्ट करता है p. I. L.में सरकार का डिफेंडिंग यानी की प्रतिवादी बनया जाता हैं और सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट या हाइकोर्ट सरकार को प्रॉपर इंट्रस्टन जारी कर ता है
यानी की p. I. L. के जरिये लोग जनहित के मामलों में सरकार को कोर्ट से इंट्रेस्टशन जारी करवा सकते हैं
चलिए हम बात करते हैं pil दाखिल कहा होती हैं pil हाइकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट मे दायर की जा सकती हैं इससे नीचें pil दाखिल नही होती हैं कोई भी pil आम तौर पर पहले हाइकोर्ट मे दाखिल की जाती है
और वहा से अर्जी खारिच होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाता हैं कई बार मामला वाइटप्रेट् पब्लिक इंटरेस्ट से जुड़ा हुआ होता है तो ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट भी सीधे ही pil आर्टिकल 32 के तहत सुनवाई करती हैं
चलिए अब हम बात करते हैं pil दाखिल कैसे करे pil 3 तरिके से दाखिल की जाती हैं या तो लेटर के जरिये या वकील के जरिये या फिर कोर्ट उस पर खुद सगयां लेती है
पहला है लेटर के जरिये अगर कोई सक्स आम आदमी से जुड़े मामले में हाइकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को लेटर लिखता है तो कोर्ट देखता है की क्या मामला वकाय आम आदमी के हित से जुड़ा हुआ है अगर ऐसा है तो pil के तौर पर लिया जाता हैं
और उसकी सुनवाई होती हैं लैटर मे ये बताना जरूर होता हैं की ये मामला पब्लिक इंटरेस्ट से कैसे जुड़ा हुआ हैं और याचिका मे जो भी मुद्दे उठाये गये हैं उनके हक मे पोकता सबूत क्या है अगर कोई सबूत है
तो उसकी कॉपी भी लैटर के साथ लगा सकते हैं लैटर pil मे तब्दि होने के बाद रिलेटेडपार्टी को नोटिस जारी किया जाता हैं और पेटिशन करने वाले को भी कोर्ट मे पेस होने के लिए कहा जाता हैं सुनवाई के दौरान अगर पेटिशन करने वाले के पास अगर वकील नहीं है
तो कोर्ट उसे वकील मोहइया करा सकती हैं लैटर हाइकोर्ट से चीफ जस्टिस के नाम से लिखा जा सकता हैं सुप्रीम कोर्ट मे भी चीफ जस्टिस के नाम से ये लैटर लिखा जा सकता हैं लैटर हिंदी या इंग्लिश किसी भी लैंगवेज मे लिख सकते हैं
हाथ से लिखा भी हो सकता हैं और टाइप किया भी हो सकता हैं लैटर डाक से भेजा जाता हैं जिस हाइकोर्ट के अधिकार क्षेत्र यानी चुरीड डेक्शं से जुड़ा हुआ मामला है उसी को लैटर लिखा सकता हैं
लिखने वाला कहा रहता है इससे उसे कोई मतलब नहीं होता है दिल्ली से जुड़े हुए मामलों के लिए दिल्ली हाइकोर्ट मे फरीदाबाद और गुणगाव से जुड़े हुए मामलों के लिए प पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट मे और u. P से जुड़े हुए मामलों के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट मे लैटर लिखना होता हैं
P. I. L. दाखिल करने के लिए दूसरा तरीका वकील के जरिये कोई भी सक्स वकील के मदत से जनहित याचिका यानि की p. I. L. दाखिल कर सकता हैं वकील पिटिशन् तैयार करने मे मदत करते हैं
और पिटिशन् मे डिफेंडिंग कौन होगा और किस तरह से उसे ड्रॉफ् किया जाएगा इन बातो के लिए वकील की मदत जरूरी होती हैं p. I. L. दायर करने के लिए कोई फीस नही लगती हैं
इसे सीधे काउंटर पर जा कर जमा करना होता हैं हा जिस वकील से आप ने इसके लिए सलाह ली है उसको फीस देनी होती हैं p. I. L online दयार नही की जा सकती हैं ये सिर्फ ऑफ लाइन ही फाइल की जाती है
P. I. L. फाइल करने का तीसरा तरीका कोर्ट का खुद कॉमनेशं यानी की सज्ञान अगर मीडिया मे जनहित से जुड़े कोई खबर छापती है
तो सुप्रीम कोर्ट या हाइकोर्ट अपने आप कॉमिनेश ले सकती हैं कोर्ट उसे p. I. L के तरह सुनती है और अर्डर पास करती हैं
चलिए हम आपको ऐसे केसेस बतता हू जिनमे p.i.l. डाली गई थी जिनसे आपको ये अंदाजा हो जाएगा की p.i. l. कैसे मामलों मे डाली जाती हैं और इसे क्या इफेक्ट होता है
सबसे पहले है स्कूलों के मनमानी पर लगाम लगने के लिए p.i.l फाइल की गई थी दिल्ली हाइकोर्ट मे 1997 मे जनहित याचिका दायर कर के कहा गया था
की स्कूलों को मनमानी तरीके से फीस बढ़ाने से रोका जाना चाहिए हाइकोर्ट ने 1998 मे दिये अपने फैसले मे कहा था
स्कूलों में कामर्सलजेशन नही होगा इसके बाद 2009 मे दोबारा से स्कूलों ने छटे बेतनो की सिपारिस करने के नाम पर फीस बढ़ा दी थी
मामला फिर कोर्ट के सामने उठा था और अशोक अग्रवाल ने p. I.l. मे माग की थी की एक कॉमेटि बनाई जाये जो ये देखे की स्कूलों मे फीस बढ़ानी जरूरी है
या नही हाइकोर्ट ने जस्टिस अनिल देव कॉमेटि का गठन किया कॉमेटि ने 2 सौ स्कूलों की रिकडो का जाँच कीऔर बताया की 64 स्कूलों ने गलत तरीके से फीस बढ़ाई कॉमेटि ने सिपरिस की स्कूलों को निर्देश दिया जाना चाहिए की बढ़ी हुई फीस व्याज सहित वापस किया जाना चाहिए दूसरी प्याइल डाली गई थी
बचपन बचने के पहल पर बचपन बचाओ के आंदोलन ओर से जानवरी 2009 मे हाइकोर्ट ने प्याल दायर करके यूनियन ऑफ इंडिया डिफेंडिंग बनया गया
और गोहर लगाई गई के प्लेसमेंट् एजान्शी द्वारा कराई जाने वाली मानव तस्करी का रोक लगने का आदेश दिया जाये आरोप लगाया गया की कई प्लेसमेंट एजैन्शीया महिलाओ का तस्करी करती है
और बच्चों से मज़दूरी कराती है सुनवाई के दौरान सरकार से जबाब मागा गया सरकार ने बताया की लेवल डीपटमेंट प्लेसमेंट एजान्शी को रिगुलेट कराने का सरकार ने एक कॉमेटि बना दी है
जो इसे कानून बनाने के लिए विधानसभा के पास भेजी गई तीसरी प्याइल डाली गई सेक्सन 377 मे संशोधन के लिए नास फाउंडेशन 2001 मे दिल्ली हाइकोर्ट मे अर्जी दाखिल करके धारा 377 मे संशोधन की मांग की थी कहा गया था की दो एडाल्स के बीच मे आपसी सहमति से अनैचुरल रिलेशन बनाऐ जाते हैं
तो उनके खिलाफ धारा 377 का केस नही बनना चाहिए हाइकोर्ट ने सरकार से अपना पक्ष रखने के लिए कहा इसके बाद कोर्ट ने अपने इतिहासिक जाजमेत मे यह कहा था की दो एडेल्स अपने सहमति से अनैचुरल रिलेशन बनाते हैंं
तो उनके खिलाफ धारा 377 मे मुकदमा नही बनेगा इसके साथ कोर्ट ने ये भी साफ किया था अगर दो एडाल्स के बीच आपसी सहमति के बिना अनैचुरल रिलेशन बनाये जाते है
या फिर नबालिक के साथ अनैचुरल रिलेशन बनाये जाते है तो ये धारा 377 के दायरे मे आयेगा जब तक सांसद इस बाबत कानून मे संशोधन नहीं करती हैं
तब तक यही जजमेंट लागू रहे गा और प्राजेंट time मे भी यही आरेंजमेंट पूरी तरह से लागू किया गया है आई पी सी के धारा 377 में यह कहा गया है की दो लोग जो आपसी सहमति असहमति से अनैचुरल संब्ंध बनते हैं
और दोसी करा दिये जाते हैं तो उनको 10 साल से सजा उम्र कैद तक की सजा हो सकती हैं और ये अपराध कॉग्निज़ाबल ऑफनेश के कैटेगरी मे आता है
और ये गैर जमानती है तो नाश फाउंडेशन 2001 मे p. I. L. फाइल कर के आपसी सहमति से बनाये गये अनैचुरल रिलेशन को धारा 377 से बहार निकलवा दिया चलिए अब हम बात करते हैं
pil का मिस्युज करने पर क्या जुर्माना लगाया गया जाता है कई बार pil का गलत इस्तमाल होता है ऐसे लोगों पर कोर्ट भारी जुर्माना लगती है ऐसे में पिटिशन् फाइल करने से पहले अपनी दलील के सपोट मे पोकता जनकारी जुटा लेना चाहिए
R. T. I. आने के बाद से pil काफी इफक्टी हो गई पहले लोगों के जनकारी की कमी के चलते अपने दलील के सपोट मे डॉक्यूमेंट जुटाने में दिकते होती थी
लेकिन अब लोग R. T. I. के जरिये डॉक्यूमेंट को पोकता कर सकते हैं फिर तमाम दस्तावेज सबूत के तौर पर पेस कर सकते हैं इस तरह जनहित से जुड़े मामले मे pil ज्यादा इफक्टी है
सो गाइस आज के इस पोस्ट में आपने जाना की p. I. L. क्या होती हैं कब और कैसे फाइल की जाती हैं और इसका मिस्युज करने पर क्या होता है अगर आप को ये पोस्ट पसंद आया है तो इसे like करिये और अपने फ्रेंड के साथ शेयर करिये और अगर आप के मन कोई प्रश्न है तो नीचे कॉमेंट मे पूछ सकते
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