हेल्लो गाईस आज के इस पोस्ट में हम बात करने वाले है की जमानती कैसे बना जाता हैं और जमानती के क्या क्या जिमेदारी होती हैं
और अगर इस situation जमानती मुल्जिम को कोर्ट में पेस नही कर पाता है तो उसके ऊपर क्या जुर्मानदाई होता है और क्या सजा होती हैं
तो इन सारी चीजों के बारे में इस पोस्ट में बात करने वाले है तो चलिए शुरू करते हैं
फौजदारी मुकदीमे में आरोपी को अदालत को जब जमानत मिलती हैं तो आम तौर पे उसे कहा जाता है की वो व्यक्तिगत मुचलके के साथ साथ यानी की अपने खुद के मुचलके के साथ ही उतनी ही रकम का एक जमानती भी पेस करे तो वो अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार या किसी पहचान वाले को जमानती के तौर पर कोर्ट में पेस करता है
जोभी जमानती बनता है उसकी जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती हैं जमानती के जिम्मेदारी सिर्फ बेल बोन भरने तक ही नहीं होती बल्कि उसकी जिम्मेदारी है जमानत पर छुटने के बाद आरोपी अगर अदालत में पेस नहीं हो रहा है
तो उसको अदालत में पेस करे कृमिनल केस में किसी आरोपी को जब जमानत देने के साथ जब अदालत ये सर्थ लगाती हैं की वो खुद के बोन्ट के अलावा जमानती भी पेस करे तो इस दौरान आरोपी के ओर से अदालत के सामने जमानतनामा पेस किया जाता हैं
उस जमानत नामे में आरोपी के पूरे डिटेल भरी जाती हैं साथ ही जमानती की राशि की डिटेल भी होती हैं और बाकी के हिस्से में जिसे उसने जमानती बनाया है
उसकी डिटेल होती हैं जैसे की जमानती के नाम होता है जमानती का पाता होता है साथ ही वो किसका जमानती बना है कितनी राशि है जमानती की ये पूरे डिटेल उस हिस्से में दिये जाते हैं
जमानती को एक हल्पनामा देना होता है उसमें ये बताना होता है कि वो आरोपी को कैसे जानता है अगर वो रिश्तेदार है तो इस बात का जिक्र करना होता है
की वो रिश्तेदार कैसे है अगर वो दोस्त है तो ये भी बताना होता है की दोस्त कैसे है कितने समय से उसका दोस्त है साथ ही जमानती को हल्पनामे में अपने बारे में डिटेल देनी होती हैं
साथ ही अपने पद की जिक्र करनी होती हैं और ये भी बताना होता है की उसका आरोपी पर कंट्रोल भी है और वो अदालत के निर्देश के मुताविक आरोपी को अदालत के सामने पेस भी कर पायेगा साथ ही जितनी जमानती की राशि का ऑर्डर होता है
उसके हिसाब से फीस डिपॉजिट या प्रोपर्टी के काग जात या पेसस्लिप बगैरा जमा करनी पड़ती है इस दौरान कई बार अदालत जमानती से मौखिक तौर पर सवाल करती है के कैसे आरोपी को जानता है किस पाते पर रहेता है
इस तरह से सवाल का सही सही जबाब देने के बाद कोर्ट बेलबोन को एक्सेप्ट कर लेती है अगर अदालत को थोडा भी शक होता है
तो वो जमानती के पाते के वेरिफिकेशन के लिए कहे सकता है वेरिफिकेशन रिपोर्ट आने के बाद बेलबोंड को एक्सेप्ट किया जाता हैं
अगर पुलिस की रिपोर्ट निगेटिव आती हैं अडड्रेस जो हैं वो वेरिफाईड नहीं हो पाता है तो फिर जमानती का बेलबोंड एक्सेप्ट नही किया जाता है और आरोपी से कोई दूसरा जमानती लाने के लिए कहा जाता हैं
बेलबोंड एक्सेप्ट करने के बाद जब आरोपी जमानत पर छुट जाता हैं तब जमानती की असली जिम्मेदारी शुरू होती हैं अगर अदालत द्वारा तय की गई तारीख पर अगर आरोपी कोर्ट पर पेस नहीं हो रहा है
तो अदालत जमानती को नोटिश जारी करती हैं जिसने बेलबोंड भरा है जमानती को अदालत मौका देती हैं की वो आरोपी को अगली तारीख तक पेस करे अगर आरोपी को अदालत मेंअगले तारीख तक पेस करने में अस्मार्थ हो जाता हैं
अगली तारीख तक उसको पेस नही कर पाता है तो तब अदालत उसके द्वारा दी गई फीस डिपॉजिट या प्रोपर्टी के काग जात या पेसस्लिप के आधार पर जमानत के राशि को जप्त कर लेती है
अगर जमानत की राशि किसी कारण से जप्त नहीं होती हैं तो कोर्ट जमानती को कारण बताओ नोटिश जारी करता हैं और फिर भी रिकब्री नहीं होती तो जमानती को सिविल रिप्रेजनमेंट में भेजा जाता हैं
सी.आर .पी. सेक्सन 446 के तहेत ज्यादा से ज्यादा 6 महीने के सिविल इंप्रेजनमेंट का प्रोविजन है एक बार जमानती की राशि जप्त हो जाने के बाद आरोपी की जमानत रद्द हो जाती है और उसके नाम गैर जमानती वारंट जारी हो जाता हैं
और तभी वो पेस नहीं होता है तो उसे भागोंढा घोसित करके फिर से कार्य वाई शुरू होती हैं जब भी कोई किसी का जमानत लेता है
तो उसे इस बात का निश्चित तौर पर इस बात का ध्यान देना चाहिए की वो जिसकी जमानत ले रहा है तो वो उसके कंट्रोल में है या नहीं अगर आरोपी उसके कंट्रोल में नहीं है
तो जमानत के राशि जप्त हो जाती है और सजा भी हो सकती है अगर जमानती फर्जी पाया जाता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाई होती हैं इसलिए आप ध्यान रखिये जब भी आप जमानती किसी का बन रहे हैं
तो आप को इस चीज का ध्यान रखना चाहिए की आप जब चाहे उसको कोर्ट में पेस कर सके इतना आप उसको कंट्रोल होना चाहिए अगर आपका उसके ऊपर कंट्रोल नहीं है
तो आप उसकी जमानत कभी मत लीजिए क्योंकि आप जो प्रोपर्टी रखेगें जो बेलबोंड भरेंगे तो वो तो जायेगा ही जायेगा साथ में आप को सजा भी हो सकती हैं जिसकी अवधी 6 महीना हो सकती हैं
तो दोस्तों आज के इस पोस्ट में अपने जाना की जमानती में क्या क्या जिम्मेदारी होती है जमानती अगर कोर्ट में मुल्जिम को पेस नहीं कर पाता है तो उसके लिए क्या सजा होती हैं और उसके ऊपर क्या जुर्माना लगाया जाता हैं
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